जोधपुर देश के सरकारी अस्पतालों में मासूम बच्चों की लगातार मौतों से हाईकोर्ट भी विचलित है। उसने जनहित याचिकाओं में राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। सरकार ने डॉक्टरों, नर्सिंगकर्मियों व टेक्निकल स्टाफ का डेटा समाहित कर एक रिपोर्ट जजों के सामने रख दी। उसी रिपोर्ट से दैनिक भास्कर ने बच्चों के इलाज की पूरी तस्वीर खींचने का प्रयास किया तो पता चला कि यहां तो सिर्फ सर्दी-जुकाम के ही विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार होते हैं, एक भी डॉक्टर शिशु कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी और पल्मोनरी में विशेषज्ञता हासिल करने की पढ़ाई ही नहीं करता तो सरकार अस्पतालों में लगाए कहां से? इसलिए सरकार ने भी राज्य के 6 मेडिकल कॉलेजों से संचालित होने वाले अस्पतालों में ऐसे विशेषज्ञ डॉक्टरों के महज 8 पद स्वीकृत तो कर रखे हैं, मगर वे सभी खाली पड़े हैं। सरकार को विशेषज्ञ डॉक्टर मिल ही नहीं रहे हैं। यह तस्वीर बताती है कि अकेले जोधपुर में बच्चों की सालाना मृत्युदर 1700 से ज्यादा क्यों है? और नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे-4 के अनुसार प्रदेश का मृत्युदर आंकड़ा प्रति 1000 पर 41 है।
सर्जन भी कम: 4 मेडिकल कॉलेज में 1-1 ही
जयपुर के एसएमएस में सर्जरी का पूरा डिपार्टमेंट है, जबकि उदयपुर में 1 भी सर्जन नहीं है। बचे हुए 4 मेडिकल काॅलेजों में 1-1 सर्जन है।
गंभीर बीमारी में प्राइवेट अस्पताल का रुख
हृदय में छेद, वाल्व बदलना, दिमाग की नसों में गड़बड़ी के कारण सुन्न हो जाना, पीलिया व न्यूमोनिया बिगड़ने से फेफड़ों में पानी भर जाने जैसी गंभीर बीमारियों में बच्चों को प्राइवेट अस्पतालों में ले जाना पड़ता है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 2019-20 में ऐसे 82 बच्चों का इलाज कराया गया है। यह इलाज आरबीएस प्रोग्राम के तहत सरकारी खर्च पर प्राइवेट अस्पताल में हुआ है।
गंभीर बीमारियों के विशेषज्ञ जीरो
शिशु रोग के न्यूरोलॉजी व नियनोलॉजी के 2-2, नेफ्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी, गेस्ट्रोएंट्रोलाॅजी व पल्मोनरी के 1-1 पद स्वीकृत है। मगर सभी पद खाली हैं, यानी जीरो(0) पद भरे हुए हैं। इन डिपार्टमेंट की पढ़ाई कराने वाले कोई प्रोफेसर डॉक्टर भी नहीं हैं।
सरकार को सोचने की जरूरत
प्रदेश में न्यूरोलॉजी, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी, नेफ्रोलॉजी और पल्मोनरी विशेषज्ञों की बहुत ही आवश्यकता है। इस तरह के कोई भी विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं। इसके लिए प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा और मेडिकल कॉलेज प्रशासन को सोचने की जरूरत है। एम्स दिल्ली और पीजीआई चंडीगढ़ में इस तरह के विशेषज्ञों के लिए पढ़ाई कराई जाती है। सरकार को डॉक्टरों की ट्रेनिंग करवानी चाहिए।
बच्चे तो छोड़ो, बड़े भी भगवान भरोसे
बच्चों की तरह ही बड़ों की बीमारियों के विशेषज्ञ डॉक्टरों की भी प्रदेश में भारी कमी है। हाईकोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के अलावा अन्य मरीजों के इलाज के लिए प्रदेश में 2580 विशेषज्ञ डॉक्टरों के पद स्वीकृत हैं, उनमें से 1742 कार्यरत हैं और 826 (30%)पद खाली पड़े हैं।